भटकना रातों में तेरी यादों के साए संग
घर देर से जाने का रोज़ नया बहाना सीखा....
ज़माने से जिन्हें पलकों में छिपाये रक्खा था
बारिश की बूंदों संग उन अश्कों को बहाना सीखा...
क्या होगा जो हाल-ए-दिल कर भी दे बयां
बेहतरी को अपनी ही ख़ामोश रह जाना सीखा....
सोचा कई बार के मिल जाये काश तू
दिल की हसरतों को फिर दिल में ही दबाना सीखा...
रूलाया है खुशी ने और गम ने हँसाया है मुझे
एकतरफा मोहब्बत ने कितना सिखाया है मुझे...
Friday, July 8, 2011
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