Friday, February 5, 2010



कहा होगा जब किसी ने परी तुमको
मासूम ये आखें ज़रा तो शरमाई होंगी ,
राह चलते जब मिला होगा कोई शखस आवारा
एक पल के लिए ही सही ,मेरी याद तो आई होगी...

क्यूँ लफ्ज़ ढूंढते हो मेरी ख़ामोशी में तुम
मेरी आखों मैं देखो , तुम्हे कई फसाने मिलेंगे ...

भीग रही है आखें बारिश के साथ-साथ,
मासूम इस मोहब्बत का आग़ाज़ ज़रा देखो ...

पीतें हैं इसलिए की हमे दो बातों का ग़म है
एक तो यह की वो हमसे जुदा हुए ,
ओर दूसरी ये की यही बात क्या कम है ...

गर दिलों पे बिजली न गिराते वो
गर आँखों से वार न करते
सूने होते न मंदिर मस्जिद
मयखाने ये खचाखच न भरते ...

जानते है हम की तू ख्वाब है हमारे लिए
हसीं सा एक ख्वाब देखने में मगर हर्ज़ ही क्या है ...

वो शखस क्या बनेगा जो ता उम्र तेरे साथ होगा
के दीवाने बन गए हम तो एक दिन की मोहब्बत में ...

आखों के गलीचे में जो बड़ी देर से बैठे है
उन अश्कों को रोक पाए तो भला कैसे ,
ग़म ये नहीं के तू भूल गया है हमको
फ़िक्र तो ये है की तुझे भुलाये तो भला कैसे