उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे सिम्भावली से जामिया मिल्लिया इस्लामिया नयी दिल्ली में एम. ए. पत्रकारिता का छात्र होने तक के मेरे सफ़र को यदि आप संघर्ष एवं लगन का उदहारण माने तो ये मेरी प्रतिभा के साथ सरासर अन्याय, ओर भाग्य का उपहास होगा, सत्य यही है की मैं निहायत ही आलसी किस्म का आवारा व्यक्ति हूँ , ओर यकीन मानिए मेरी ये आवारगी मेरे व्यक्तित्व में स्पष्ट दृश्यमान होती है, लोगों को अक्सर मैंने अपने बारे में कहते हुए सुना है की जब मैं चलता हूँ तो उन्हें निर्णय लेना कठिन हो जाता है , ये मृत शरीर है जो जीने का प्रयास कर रहा है अथवा ऐसा जीवित व्यक्ति जो मरने का स्वांग रच रहा है, राज कपूर, गुरुदत्त ओर अपनी दादी का बहुत बड़ा प्रशंसक , समय से बहुत पीछे चलने वाला एक ऐसा व्यक्ति जो सदेव हृदय की सुनता है, इसलिए नहीं की वो भावुक है , इसलिए क्यों की उसमे दिमाग है ही नहीं ....
जितनी बढ़िया आपकी शायरी है उतनी ही बढ़िया आपकी फोटो :)
ReplyDeleteअपने बारे में भी आपने खूब लिखा है, हा हा हा
धन्यवाद केशरी जी , वैसे फोटो गतिमान नहीं है इसलिए अच्छी लगी, वर्ना मेरी गति अच्छाई की कसौटी पर खरी नहीं उतरती |
ReplyDeletekya khoob kaha aapne....
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