भटकना रातों में तेरी यादों के साए संग
घर देर से जाने का रोज़ नया बहाना सीखा....
ज़माने से जिन्हें पलकों में छिपाये रक्खा था
बारिश की बूंदों संग उन अश्कों को बहाना सीखा...
क्या होगा जो हाल-ए-दिल कर भी दे बयां
बेहतरी को अपनी ही ख़ामोश रह जाना सीखा....
सोचा कई बार के मिल जाये काश तू
दिल की हसरतों को फिर दिल में ही दबाना सीखा...
रूलाया है खुशी ने और गम ने हँसाया है मुझे
एकतरफा मोहब्बत ने कितना सिखाया है मुझे...
Friday, July 8, 2011
Monday, July 12, 2010
मेरे प्यारे अंधेरे
अँधेरे,
जिनसे डर कर मैं कभी छुप जाया करता था,
पर तब मैं बहुत छोटा था I
अँधेरे ,
जिनसे डर कर मैं कभी छुप जाया करता था,
पर तब मैं बहुत छोटा था I
अँधेरे ,
अब मुझे डराते नहीं हैं ,
सच तो यह है की अब रोशनी मुझे डराती है
तमतमाते हुए सूरज से निकलती दिन में
रात में स्ट्रीट लाइट से छनती
जब पड़ती है मुझ पर फोकेस बनकर
तो मेरा समूचा अस्तित्व हिला जाती है I
शायद मैं खुश होता, अगर मैं
किसी ड्रामा का मुख्य पात्र होता
पर मैं जानता हूँ की मैं एक जोकर हूँ
तभी रोशनी के आवरण में आते ही
दुनिया मुझमे खोजने लगती है
अपनी हँसी के कारण I
वो मुझसे अपेक्षा करती है की
मैं चलू मर्धिल्ला सा ,
या बेवजह इतना हँसु
की उनके चेहरों पर चमक उत्पन्न हो I
घबरा कर मैं याद करता हूँ
अंधेरों को ,
जो छुपे है किसी ओट में ,
या स्याह रात की चादर ओढे I
अंधेरे ,
जो मुझे समेट लेते हैं अपने आगोश में
एक माँ की तरह,
जिनमे विलय होकर
मेरा अस्तित्व विलुप्त हो जाता है
ओर शेष बचती है शून्यता I
उजालों से डरकर ,
कई बार मैंने प्रत्यन किया
आखें मूँद लेना का
पर बंद आँखों में अँधेरे नहीं मिलते
शून्यता नहीं होती,
बंद आखों में प्रारंभ हो जाती है
एक सामानांतर दुनिया ,
जिसमे कई बार तुम भी आती हो
अपनी कूची से अंधेरों को चीरती हुई
और कर देती हो कई रंगों का सर्जन I
कभी तस्वीर बनाती हो मेरी ,
कभी मुझपर कविताएँ कहती हो I
और फिर अचानक से तुम्हे शिकायत होती है
की क्यूँ मैं उस तस्वीर से मेल नहीं खाता ,
जो कैनवास पर उकेरी है तुमने मेरे नाम से I
क्यों मैं उन कवितायों का "मैं" नहीं हूँ ,
क्यों मैं उन कवितायों का "मैं" नहीं हूँ ,
जो तुमने मुझे सोचकर लिखी हैं I
खड़ा हो जाता है मेरे समक्ष
वही यक्ष प्रशन,
"मैं क्यों नहीं हूँ अपने ही जैसा?"
और घबराकर मैं आखें खोल देता हूँ ,
वही तेज रोशनी
मेरे अस्तित्व को लाकर
खड़ा कर देती है सरे बाजार
खड़ी हो जाती है दुनिया मुझे घेरे
खड़ी हो जाती है दुनिया मुझे घेरे
ओट की तलाश में फिरता दर बदर
कहता हूँ फिर मैं
कहाँ हो तुम
"मेरे प्यारे अंधेरे"
- अरविन्द
Saturday, April 17, 2010
Wednesday, April 14, 2010
Tuesday, April 13, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)